Wednesday, September 7, 2011

मायावती ने कुछ अनोखा नहीं किया

विकिलीक्स के संस्थापक जूलियन असांज और यूपी की मुख्यमंत्री मायावती के बीच हुई तानेबाजी किसी के भी होठों पर मुस्कान ला देगी। विकिलीक्स ने खुलासा किया कि मायावती ने अपने पसंदीदा सैंडल्स लाने के लिए अपना एक प्राइवेट जेट विमान लखनऊ से मुंबई भेजा था। इस खबर के बाद मायावती ने गुस्साते हुए कहा कि असांज को पागलखाने भेज दिया जाना चाहिए। असांज मायावती के इस बयान से निश्चित तौर पर चौंके होंगे इसीलिए उन्होंने पूरी गंभीरतापूर्वक उनको यह सलाह दी कि जो कुछ उनकी साइट ने लीक किया है, वह सरकारी अमेरिकी दस्तावेज है और अगर इससे उन्हें कोई समस्या है तो वह उनसे नहीं हिलेरी क्लिंटन से इस बारे में बात करें। इसके साथ ही उन्होंने चुटकी भी ली कि मायावती को अपना प्राइवेट जेट विमान यूके भेज कर उन्हें बुला लेना चाहिए, जहां उन पर आरोप लगा कर उन्हें उनके ही घर में नजरबंद किया हुआ है। उन्होंने यह भी कहा कि वह भारत में शरण पाकर बहुत खुश होंगे और यह प्रस्ताव भी दिया कि वह मायावती के लिए इंग्लैंड से बढ़िया से बढ़िया चप्पलें भी ला सकते हैं।


मुझे पूरा विश्वास है कि बहुत से लोगों को यह संवाद मजेदार लगा होगा। मुझे भी लगा। लेकिन ईमानदारी से देखें तो, इसमें आखिर ऐसी क्या नई बात है? लीक हुए डॉक्युमेंट ने भले ही मायावती को निशाना बनाया हो लेकिन हम सब जानते हैं कि हमारे महान लोकतंत्र में ऐसा तो होता ही रहता है। अगर लीक हुए डॉक्युमेंट में कोई गड़बड़ी है तो शायद यह कि प्लेन को मायावती का निजी जेट बताया गया है। ज्यादा संभावना इस बात की है कि यह राज्य सरकार का प्लेन रहा होगा। केंद्र और राज्य सरकारों के (लगभग) सभी विमान उच्च पदाधिकारियों द्वारा इसलिए इस्तेमाल किए जाते हैं ताकि वे अपना कीमती वक्त गंवाए बिना यहां से वहां जल्द से जल्द पहुंच पाएं और जो समय बचे वह 'राष्ट्र की सेवा' में लगा सकें। बहुत ही अच्छी मंशा है!

आपको शायद याद होगा कि हाल ही में एक खबर आई थी कि जम्मू और कश्मीर के युवा चीफ मिनिस्टर उमर अब्दुल्ला छुट्टियों के दिनों में राज्य सरकार के प्राइवेट हेलिकॉप्टर का उपयोग राज्य के पिकनिक और टूरिस्ट स्पॉट पर आने-जाने में करते हैं। और यह सब वह सरकारी काम के नाम पर करते होंगे, यह मैं पूरे यकीन के साथ कह सकता हूं।

मैंने श्रीनगर में अपने एक फ्रेंड से बात की थी जो वहां की गतिविधियों से काफी करीब से जुड़े हैं। उन्होंने बताया था कि जब से यह खबर आई है तब से मुख्यमंत्री की पिकनिकें काफी कम हो गई हैं। अब यह तो काफी गैरजिम्मेदाराना रवैया हो गया! एक उच्च पदासीन व्यक्ति कैसे काम करेगा अगर उसके हर कदम पर नजर रखी जाएगी? बिल्कुल गैरजिम्मेदार पत्रकारिता है!

खैर, मजाक से हट कर बात की जाए... सच तो यह है कि विकिलीक्स ने जो 'खुलासा' किया है, वह असल में 'खुलासा' है ही नहीं। यह एक ऐसा कैंसर जो सिर्फ टॉप पॉलिटिशन्स के बीच ही नहीं बल्कि टॉप बाबूओं और यहां तक कि सेना में भी फैला हुआ है।

आमतौर पर मैं अपने सैन्य बलों को बदनाम करने से बचता हूं। लेकिन, यह तो एक खुला हुआ राज़ है कि कैसे एयर फोर्स के ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट का सीनियर ऑफिसर्स द्वारा मिसयूज किया जाता है। किसी अधिकारी का ट्रांसफर हुआ उसका पर्सनल सामान ट्रांसपोर्ट विमान से यहां से वहां (जैसे दिल्ली से गुवाहाटी) ले जाया गया और ट्रिप को बताया गया ऑफिशल। यह कोई नई बात नहीं है। सब जानते हैं कि यह नियमों के खिलाफ है लेकिन यह धड़ल्ले से होता है।

और, सरकारी बाबूओं के बारे में तो क्या कहा जाए! जब बात ऑफिशल मशीनरी के मिसयूज की आती है तो वे शायद हमारे संसाधनों के सबसे बड़े ठग हैं। नियमानुसार, उन्हें केवल सरकारी कामकाज के लिए सरकारी वीइकल दिया जाता है। हां, कुछ सीनियर अधिकारी इसका अपवाद हैं या वे लोग भी जिनको सुरक्षा कारणों से हमेशा सरकारी वाहन लेना पड़ता है। मैं निजी तौर पर ऐसे कुछ टॉप अधिकारियों को भी जानता हूं जो अपने पर्सनल वाहनों का इस्तेमाल करते हैं, खुद चलाते हैं और प्राइवेट फंक्शन अटैंड करते हैं। ये लोग एकदम अपवाद हैं। ऐसे गिनेचुने लोगों में एक पूर्व गृह सचिव भी हैं जिन्होंने अपने निजी कामकाज के दौरान सुरक्षा चिंताओं की उपेक्षा करते हुए हमेशा अपना वाहन इस्तेमाल किया।

मुझे याद आ रही है एक सरकारी अधिकारी से हुई मेरी झड़प। बात कुछ साल पहले की है जब मैं गुड़गांव के निकट एक पतली सड़क पर साइकलिंग कर रहा था। यह लाल बत्ती वाली गाड़ी थी जो इस इलाके के टॉप गॉल्फ कोर्स की ओर बेलगाम भागी जा रही थी। उस तेज़ गाड़ी से बचने के लिए मुझे हड़बड़ाकर साइकिल बिल्कुल किनारे करनी पड़ी। चूंकि गॉल्फ कोर्स ज्यादा दूर नहीं था, मैंने पीछा किया और जब अधिकारी गाड़ी से उतर रहा था, उस समय उसे पकड़ लिया। मुझे याद है - मैंने तीन चीजें पूछी थीं। पहली, उसने अपने ड्राइवर को सेफली चलाने के लिए क्यों नहीं कहा? दूसरा, वह कार पर लगी हुई लाल बत्ती का इस्तेमाल क्यों कर रहा था? तीसरा, वह गोल्फ खेलने के लिए सरकारी कार में क्यों आया है? उसने कोई जवाब नहीं दिया था, बल्कि मुझे तुच्छ समझते हुए भगाने की कोशिश की थी। उसके ड्राइवर ने मुझे धमकाया भी। मैंने यह  नहीं बताया कि मैं मीडिया से हूं।

लेकिन, मैं डटा रहा और मजबूती से अपने तर्क रखे और उसे नियमों के बारे में बताया और कहा कि वह जो कुछ कर रहा है, वह गलत है। उसे बड़ा झटका लगा कि अव्वल तो कोई उससे ऐसी बहस कर रहा है और दूसरे, वह नियम भी जानता है। वह तुरंत ठंडा पड़ गया और उसने माफी मांगी।

मैं उस दिन अपनी बात कहने में कामयाब रहा था, इसका मुझे संतोष है लेकिन मुझे लगता है कि वह बात वहीं खत्म नहीं हो जानी चाहिए थी। सोचिए, कितना बढ़िया हो अगर हममें से कोई एक व्यक्ति आरटीआई दाखिल करें और पता करे कि बेहतर गवर्नेंस देने में जुटे बाबू लोग सरकारी वाहनों का किस हद तक दुरुपयोग करते हैं! मैं मानता हूं कि करोड़ो रुपए डकारनेवाले बड़े ठगों के मुकाबले इन छोटे ठगों द्वारा उड़ाई जानेवाली रकम अपेक्षाकृत काफी कम होगी, फिर भी हमारा यह कदम इस बात का संकेत दे सकता है कि हम अब जग चुके हैं और यही नहीं, उनके हर गलत काम पर सवाल करेंगे।

अब समय आ गया है कि हम उन्हें बता दें कि हमने उन्हें जनता का काम करने के लिए चुना है न कि हम पर हुकूमत करने के लिए। और, बाबू यह भी जान लें कि उन्हें 'पब्लिक सर्वेंट' ऐसे ही नहीं कहा जाता है।


राजेश कालरा को ट्विटर पर फॉलो करें।



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