Monday, September 12, 2011

कौन दे रहा है पार्टियों को इतना चंदा?




नई दिल्ली ।। राजनीतिक दल अपने चंदे का बड़ा हिस्सा ऐसे स्रोतों से जुटा रहे हैं, जिनके बारे में कोई जानकारी नहीं है। वे जो इनकम टैक्स रिटर्न दाखिल करते हैं, उनसे तो ऐसी ही बात सामने आई है। कांग्रेस, बीजेपी, एनसीपी और बीएसपी ने बीते 5 बरसों के दौरान चंदा देने वालों की जो लिस्ट और रिटर्न दाखिल किए हैं, उनसे साफ होता है कि इन दलों ने उन दानदाताओं की पहचान नहीं उजागर की है, जिनसे उन्हें ज्यादातर फंड मिलते हैं।


मसलन, 2004-05 से लेकर 2008-09 तक कांग्रेस ने कूपनों की बिक्री से कम से कम 978 करोड़ रुपए जुटाए, लेकिन उसने अधिकारियों को सहयोग देने वालों की कोई लिस्ट नहीं मुहैया कराई। इसकी तुलना में इसी अवधि में कांग्रेस ने चंदा देने वालों के नाम पर महज 85 करोड़ रुपए जुटाए।

बीजेपी विपक्ष में रहते हुए चंदा जुटाने में उतनी कामयाब नहीं रही है। उसने 2005 से 2009 के बीच आजीवन सहयोग निधि कूपनों की बिक्री से 32 करोड़ रुपए हासिल किए। इसके मुकाबले उसे ज्ञात दानदाताओं से 95 करोड़ रुपए मिले।

जहां तक बीएसपी का सवाल है तो वह आकार छोटी होने के बावजूद फंड जुटाने में ज्यादा कामयाब रही है। पार्टी को 2007-08 से 2008-09 के बीच यानी महज दो बरसों में 200 करोड़ रुपए का नकद चंदा मिला। बीएसपी ने उसे सहयोग करने वालों के बारे में कोई जानकारी नहीं दी है। पार्टी का दावा है कि सारे चंदे 20 हजार रुपए से कम हैं। जब इनकम टैक्स अधिकारियों ने चंदा देने वालों की पहचान उजागर करने की कोशिश की, तो बीएसपी ने दलील दी कि उसे नकद धनराशि देने वाले पार्टी के गरीब समर्थक हैं, जिन्होंने पार्टी नेता मायावती के प्रति प्रेम के चलते ऐसा किया।

रीप्रेजेंटेशन ऑफ पीपल्स एक्ट के मुताबिक, राजनीतिक दलों को किसी शख्स या कंपनी की ओर से प्राप्त 20 हजार रुपए तक के चंदे की जानकारी देनी होती है। इस मामले से परिचित लोगों का कहना है कि यह महज इत्तफाक नहीं है कि ज्यादातर चंदे 20 हजार रुपए से ऊपर नहीं होते, जिसके चलते दान देने वालों की पहचान जाहिर नहीं हो पाती। इस मुद्दे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चलाने वाले एक्टिविस्ट का ध्यान खींचा है और उन्होंने राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता लाने के लिए मुहिम चलाने का फैसला किया है।

प्रदीप ठाकुर 


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